Bhawanimandi: जयपुरिया मिल के बाद अब मेला मैदान पर भू माफियाओं की गिद्ध दृष्टि

विधानसभा से विधानसभा तक; विधायक कालूराम ने विधानसभा में उठाया था जयपुरिया मिल का मामला, अब ठंडी पडी आवाज

झालावाड: भूमाफिया बनाम नेताओं का आधुनिक वर्जन भवानीमंडी शहर में सार्वजनिक जमीनों को खुदबुर्द करता जा रहा है। पहले जयपुरिया मिल के बाद अब मेला मैदान की जमीन को ये गिरोह खुर्दबुर्द करने की तैयारी में हैं।  

कुछ दिनो से मेला मैदान की भूमि बिकने की शहर में आमचर्चा है। उसी को लेकर नगर की भाजपा टीम ने नगर पालिका के मुख्य अधिकारी मनीष मीणा को ज्ञापन सौंपा। भाजपाइयों ने आरोप लगाया है कि नगर की कई बेशकीमती जनोपयोगी जमीनों को नगर पालिका के जिम्मेदारों द्वारा खुर्द-बुर्द करने की तैयारी की जा रही है। इस भूमि का एक प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है जिसमें एक ओर की पक्षकार नगर पलिका प्रशासन है। भाजपा नेताओे का आरोप है कि नगर पालिका के जिम्मेदारों की ओर से पालिका का पक्ष कमजोर किया जा रहा है। जिससे नगर पालिका केस हार जाए और भूमि दूसरे पक्ष के हाथों में चली जाए। 

सूत्रों की मानें तो इस षडयंत्र में जिले के कुछ सफेदपोश शामिल है। ताकि इस बेशकीमती भूमि से नगर पालिका का कब्जा हटने के बाद दूसरे पक्ष के साथ मिलकर इसे हैसियत के हिसाब से मिल बांटकर नौचा जा सके। जबकि ये मैदान शहर की सभी सामाजिक, सांस्कृतिक और खेल गतिविधियों का केन्द्र है। यहां विवाह सम्मेलन, मेले, सांस्कृतिक कार्यक्रम, टूर्नामेंट आदि कार्यक्रम होते हैं। ये जमीन छिन जाने के बाद पूरे शहर को अपनी विरासत से वंचित होना पड़ सकता है।

हालांकि भाजपा नेताओं के जवाब में नगर पालिका के अधिकारी ने साफ तौर पर इनकार करते हुए कहा कि नगर पालिका का यह मामला 1962 से न्यायालय में चल रहा है। जिसमें एसडीएम कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पालिका की ही जीत हुई है। इसलिए ये भूमि के खुर्दबुर्द होने का कोई प्रश्न नहीं उठता। 

हालांकि अधिशासी  अधिकारी का दावा अपनी जगह है लेकिन ऐसे ही दावे जयपुरिया मिल को लेकर भी किए गए थे। 

जयपुरिया मिल के 176 बीघा भूमि मामले में भी इसी तरह के आश्वासन, जनविरोध व पार्षदों के बहुमत से विरोध के बाद भी इस भूमि को भूमाफियों ने गिद्धों की तरह नोच लिया। इन गिद्धों में कोई पहाडों में रहने वाले शौले फिल्म के गब्बर जैसे डकैत नहीं है बल्कि आप और हमारे बीच रहने वाले सफेदपोश ही है। इनमें से कई तो हर पांच साल में हाथ जोडकर वोट मांगने भी आते हैं। ये या तो इन गिरोहों में हिस्सेदार होते हैं या फिर पहले जनता की ओर से आवाज उठाते हैं और बाद में पैसा लेकर चुप बैठ जाते हैं। आम जनता को तो इन सब से कोई मतलब ही नहीं। जब तक खुद की जान पर न बन आए जतना जागती नहीं। 

शहर में जमीनों के गोरखधंधों से मोटी कमाई करने वालो के कई सिंडिकेट इन दिनों फलफूल रहे है। मास्टर प्लान को तहस नहस करने से लेकर ग्रीन बेल्ट व कृषि भूमि कॉलोनिया काटने वाले भूमाफियों के हौसले इतने बुलंद है कि वे अब शहर की जनहित के उपयोग की भूमियों को भी ठिकाने लगाने में एकजुट है। अगर यह कहा जाए कि इसमें कई सफेदपोश और भ्रष्ट अधिकारी भी शामिल है तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी। पर सवाल यह है कि आखिर यह सब कब तक होगा। कब तक जनहित की जमीनें बिकती रहेगी। 

विपक्ष की राजनीति सिर्फ ज्ञापन देने तक ही समिति है। जयपुरिया मिल की 176 बीघा व अन्य मुद्दों के लिए भी खूब ज्ञापन दिए गए। मामला विधायक से विधानसभा, पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर राजस्थान सरकार तक भी पहुँचा। कुछ दिनों की राजनीतिक हलचल के बाद सब कुछ थम सा गया। 

पिछली विधानसभा में तो डग विधायक कालूराम मेघवाल ने प्रश्न भी उठाया। अब सरकार भाजपा की और विधायक भी भाजपा के। अपनी ही सरकार में विधायक के प्रश्न की गूंज ऐसी दबी कि वर्तमान विधानसभा सत्र तक तो कोई कार्रवाई ही नहीं हुई। अब उस सरकारी भूमि पर बिना कनवर्जन भूखंडों की खरीद बेच आज भी बदस्तूर जारी हैै। 

ये कोई अतिशयोक्ति नहीं कि यही सब किस्सा एक दिन मेला मैदान को लेकर देखने को मिले।

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