| चित्र: पालिकाध्यक्ष कैलाश बोहरा का सम्मान करते हुवे प्रशानिक अधिकारी

- पलिकाध्यक्ष रहते अपने परिवार के खिलाफ बोहरा ने नहीं किया प्रतिवाद
- विरोध हुआ तो बोले कर दी दान
- रेलवे स्टेशन के निकट सडक पर अतिक्रमण का मामला
- पूर्व पालिकाध्यक्ष गुर्जर ने हटवाया था अतिक्रमण
- बोर्ड बदला तो लोक अदालत में नहीं किया प्रतिवाद
झालावाड: रेलवे स्टेशन के निकट सीसी सडक में हुई देरी और राजनीतिक हंगामे के बाद अब बेशकीमती जमीन हथियाने के लिए चल रही खींचतान की परते अब खुलने लगी है। सिविल न्यायालय में नगर पालिका और कैलाश बोहरा के परिवार के बीच चल रहा प्रकरण बोहरा के पालिकाध्यक्ष बनते ही समाप्त हो गया। लोकअदालत में पालिकाध्यक्ष और नगर पालिका की ओर से उनके अधिवक्ता ने कोई प्रतिवाद ही दर्ज नहीं कराया और यह भूमि बोहरा के परिवार के हम में चली गई। लेकिन सडक निर्माण के समय जब विवाद बढा तो उनके इस भूमि से अपना दावा छोडना पडा। दरअसल इस जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए नगर पालिका लंबे समय से प्रयासरत थी। नगर पालिका की ओर से मार्च 2015 में दिए गए नोटिसों के बाद पालिकाध्यक्ष कैलाश बोहरा के पुत्र राहुल बोहरा सहित अन्य लोगों ने सिविल कोर्ट में स्टे के लिए वाद दायर किया। जिसमें बताया था कि ये सम्पत्ति उन्होंने फूलचंद शर्मा से खरीदी थी। लेकिन नगर पालिका के पिछले बोर्ड ने इस भूमि से अतिक्रमण हटा दिया। जिसके खिलाफ बोहरा की ओर से संपत्ति विक्रेता फूलचंद शर्मा ने नगर पालिका अध्यक्ष और आयुक्त के खिलाफ न्यायालय में वाद दायर किया। यह प्रकरण न्यायालय में 2022 तक विचाराधीन रहा।
लेकिन इस बीच नगर पालिका में हुए चुनाव के दौरान कांग्रेस का बोर्ड बना और कैलाश बोहरा पालिकाध्यक्ष और शहर के प्रथम नागरिक चुने गए। ऐसी स्थिति में बोहरा के परिवार की ओर से दायर विवाद में वादी उनके परिवार की ओर से फूलचंद शर्मा थे। जबकि प्रतिवादी खुद पालिकाध्यक्ष कैलाश बोहरा और आयुक्त थे।
यही वह समय था जब बोहरा को अपने दायित्व का निर्वाह ईमानदारी से करते हुए शहर के हितों की रक्षा करनी थी। लेकिन बोहरा ने यहां शहर के हितों को दरकिनार करते हुए परिवार के हितों की रक्षा की। उनके पालिकाध्यक्ष पद पर काबिज होते ही वादी की ओर से राजीनामा प्रस्ताव न्यायालय में पेश किया गया। जिसके बाद सिविल न्यायालय ने यह प्रकरण समझौते के लिए लोक अदालत में भेज दिया गया। जहां बोहरा के पालिकाध्यक्ष रहते पालिका की ओर से न्यायालय में कोई आपत्ति नहीं की गई और वादी की ओर से पेश प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। जिसके बाद नगर पालिका की सहमति से 22 अगस्त को इस भूमि को वादी फूलचंद शर्मा की मान ली गई। जिसके बाद इस भूमि पर नगर पालिका का दावा शून्य हो गया।
लेकिन गत दिनों सडक निर्माण के दौरान जब एक तरफ की सडक एक माह तक अधूरी पडी रही तो और विवाद बढ गया। सोशल मीडिया पर भी अधूरे सडक निर्माण के प्रति आक्रोश बढता गया। जिससे पालिकाध्यक्ष रहते की गई मिलीभगत सामने आने लगी। आखिर पालिकाध्यक्ष को इस भूमि से अपना दावा छोडना पडा जिसके बाद सडक का निर्माण शुरू हो सका।
पलिकाध्यक्ष कैलाश बोहरा ने इस मामले में प्रेस नोट जारी कर सफाई भी दी। जिसमें कहा कि उन्होंने इस भूमि को सार्वजनिक हित को देखते हुए जनता के उपयोग के लिए दे दिया है। उनका कहना था कि भजपा नेता इस मामले में अनावश्यक राजनीति कर रहे है और राजनीतिक मुद्दा तलाश रहे हैं।
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