कॉटन साड़ी दिलाएंगी गागरोनी तोते और झालावाड़ को पहचान

झालावाड़: जिले की कॉटन की साड़ी की पहचान फेमस गागरोनी तोते (पैरट) के नाम से बने, इसके लिए झालावाड़ जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर असनावर में हथकरघा चलाने वाले सुजानमाल बुनकर ने साड़ी प्रिंट कराकर बाजार में उतारी है। ऐसे में जिले से इस उत्पाद की पहचान के अलावा भी यहां करीब 15 से 20 महिलाओं को रोजगार मिलने लगा है। जिला स्तरीय बुनकर पुरस्कार योजना के तहत 10 पुरस्कारों के चयन में 'गागरोनी तोते साड़ी की प्रिंट' के लिए सुजानमाल बुनकर को भी प्रथम पुरस्कार मिल चुका है। हाड़ौती में कोटा जिले में कैथून कस्बे की भी साड़ी के नाम पर पहचान बनी हुई है। बुनकर सुजानमल भी चाहते है कि इस साड़ी की पहचान गागरोनी तोते के माध्यम से बनेगी, क्योकि तोता ऐसा पक्षी है जिसे देशभर में जाना जाता है। जानकारी में आया है कि लुप्त होती इस प्रजाति को लेकर वनविभाग भी इस फेमस गागरोनी तोते की ब्रांडिंग को लेकर काम कर रहा है।

बंगाल के ट्रेनर ने दिया 45 दिन का प्रशिक्षण-

सुजान मल ने बताया कि 45 दिन का प्रशिक्षण बंगाल से आए साड़ी के डिजाइनर ने दिया है, उसके लिए जयपुर से विवाह केंद्र में बात करने पर वहां के अधिकारी तपन शर्मा ने बताया कि इस तरह का प्रिंट बंगाल के डिजाइनर कर सकते हैं। ऐसे में वहां से 45 दिन के लिए झालावाड़ बुलवाकर करीब 10 से 15 महिलाओं को साड़ी बनाने का पूरा प्रशिक्षण दिया गया है।

करीब 5 हजार में बिकी है साड़ी-गगरोनी तोते की पहचान रखने वाली साड़ी 5 हजार की कीमत पर बेची गई है। अभी तक उदयपुर, दिल्ली, सिरोही सहित अन्य बाजार में भी इस साड़ी को ले जा चुके है। करीब 6 माह से इसका प्लान किया गया था।


नहीं बना सकेंगे इस नाम से हूबहू साड़ी- इस साड़ी की डिजाइन प्रिंट और हूबहू नकल कोई दूसरा नहीं कर सकेगा। इसके लिए उन्होंने भारत सरकार के बुनकर सेवा केंद्र जयपुर में पेटेंट कराया है।अगर कोई फिर भी ऐसा करता है तो वह नकली मानी जाएगी।

साड़ी को लेकर इसलिए आया आइडिया- सुजानमल खादी क्षेत्र से वर्षों से जुड़े हैं। ऐसे में असनावर में खादी को लेकर उनका एक जुनून है। वह यहां के स्थानीय जरूरतमंद लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने में रुचि रखते हैं। वही वह अन्य स्थान की अलग- अलग उत्पाद की पहचान को लेकर भी वह विचार कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने तोते की पहचान के नाम को आगे बढ़ाया। उनका मानना है कि तोता ऐसा पक्षी है जिसे भारत वर्ष में सब लोग जानते हैं। जैसे कोटा डोरिया की तरह कई राज्यों और जगह पर अलग- अलग साड़ियों की और अन्य उत्पादों की पहचान बनी हुई है। इसको लेकर उन्होंने गागरोनी तोते को भी साड़ी के माध्यम से पहचान देने का प्रयास किया है। उनकी पूरी मदद बुनकर सेवा केंद्र जयपुर और जिला उद्योग केंद्र झालावाड़ ने की है।

कितने घण्टे में एक साड़ी-

साड़ी को एक बुनकर (श्रमिक) 6 दिन में बनाकर तैयार कर देता है। साड़ी की कुल लंबाई साढ़े सात मीटर है। इसमें उसी कलर का ब्लाउज भी शामिल है। साड़ी की डिजाइन में पेड़ पौधों के कलर है। फिलहाल इसकी लागत को कम करने के प्रयास किए जा रहे है।

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