इसमें बच्चे के भरण-पोषण से लेकर अन्य मुद्दे भी शामिल हैं। बच्चे को जन्म देने से पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुंचने का अनुमान है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अदालत ने महिला चिकित्सालय सांगानेर की अधीक्षक को निर्देश दिया कि वे मेडिकल बोर्ड से पीड़िता का गर्भपात कराने की व्यवस्था करें। वहीं, अगर भ्रूण जीवत पाया जाता है तो उसे जीवत रखने के समस्त इंतजामात किए जाए। इससे भविष्य में राज्य सरकार के खर्च पर उसका पालन-पोषण हो सके। यदि भ्रूण जीवित नहीं पाया जाता है, तो भ्रूण से टिशू लेकर डीएनए रिपोर्ट के लिए उसे संरक्षित रखा जाए।
गर्भपात के लिए माता-पिता सहमत थे
पीड़िता की अधिवक्ता ने बताया- इस मामले में 13 साल की पीड़िता 27 माह 6 दिन की गर्भवती है। क्योंकि वह नाबालिग है, ऐसे में उसके माता-पिता की गर्भपात कराने के लिए सहमति थी। हमने कोर्ट बहस के दौरान कोर्ट को बताया कि ऐसे कई मामले हैं, जहां देश के विभिन्न हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने 28 माह की गर्भवती को भी गर्भपात की अनुमति दी है। पिछली सुनवाई कोर्ट ने तीन एक्सपर्ट के मेडिकल बोर्ड से पीड़िता का एक्जामिन करके रिपोर्ट देने के निर्देश दिए थे। मेडिकल बोर्ड की 8 मार्च की रिपोर्ट में था कि पीड़िता का गर्भपात किया जा सकता है, लेकिन उसमें हाई रिस्क है।
हमने कोर्ट से कहा कि पीड़िता अवांछित बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है। वहीं मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में भी कहा गया है कि बलात्कार के कारण गर्भवती होने पर गर्भावस्था से होने वाली पीड़ा को गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर क्षति माना जाएगा।
24 हफ्ते से पहले कोर्ट की अनुमति जरूरी नहीं
इससे पहले भी एक अन्य मामले में हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ रेप पीड़िताओं के मामले में गाइडलाइन जारी करने की मंशा जता चुकी है। बैंच ने कहा था कि दी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 में साफ कहा गया है कि 24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी से पहले गर्भपात के लिए अदालत की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बाद अदालत से अनुमति लेनी होती है।
क्योंकि पीड़िताओं को उनके अधिकारों के बारे में बताया नहीं जाता हैं। ऐसे में बड़ी संख्या में अदालत में याचिकाएं दायर होती है। चाहे वह बालिग हो या नाबालिग। अधिकतर महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है।
खासतौर पर यौन उत्पीड़न की शिकार नाबालिग को पुलिस और संबंधित एजेंसी उनके अधिकार के बारे में नहीं बताती है। इसके चलते उन्हें न चाहते हुए भी मजबूरी में बच्चे को जन्म देना पड़ता है। ऐसे में अब अदालत इस मामले में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करेगी। इस मामले में रेप पीड़िता 31 सप्ताह की गर्भवती थी। जिसे कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति नहीं दी थी।
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