कपिल चौहान | भवानीमंडी: पिपलादी हादसे के बाद पूरा राजस्थान शोक में है। इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। सरकारी स्कूल के जर्जर भवन का अचानक गिर जाना यह महसूस करवाता है कि आखिर सरकारी सिस्टम किस हद तक जर्जर हो चुका है। स्कूल भवन की मरम्मत के लिए गांववालों ने मांग की, पर इसे सरकारी तंत्र तक समय पर पहुँचाने की जहमत स्कूल के जिम्मेदारो ने नही उठाई।
ना ही जिले के आला अधिकारी सरकारी स्कूल की दुर्दशा की गम्भीरता से सुध ले पाए। जैसे पूरे ही सरकारी सिस्टम को लापरवाही का रोग लगा हो। दुष्परिणाम सबके सामने है। मासूम बच्चों की मौत, मलबे में दबे शव, परिवारों के बिलखते आंसू व असहनीय दर्द। मौत का ये मंजर ऐसा कि जैसे खुद को बार- बार मन कौस रहा हो, क्या यही है हमारा भारत, जो विश्वगुरु बनने की तैयारी में है।
यही असलियत है हमारी सरकारी व्यवस्थाओ की। लापरवाही एक सरकारी परम्परा बन गई है। इस हादसे ने सरकारी स्कूल व अस्पतालों में जाने से बचने वालो को यह विश्वास दिला दिया कि वह एकदम सही सोचते है, सरकारी व्यवस्थाएं व तंत्र ऐसे ही चलते है। नेतानगरी में मासूमो की मौतो पर श्रद्धांजलि दे दी जाएगी। आर्थिक सहायता मिल जाएगी। पर सिस्टम तो सरकारी है और सभी को मालूम होना चाहिए कि सरकारी सिस्टम ऐसे ही काम करते है।
शर्मनाक है कि स्कूल की मरम्मत करवाने में सालो गुजर गए और मासूमो की मौतो पर राजनीतिक त्यौहार बनाने आने वालों के लिए राजसी लाल कालीन की तरह सड़क बनाई जा रही है।
पूरा प्रदेश मासूम स्कूली बच्चो की मौत का मातम बना रहा है और शिक्षा मंत्री का स्वागत हो रहा है। ढोल नगाड़ों के साथ पुष्पहार पहनाए जा रहे है। इससे ज्यादा संवेदनहीनता और क्या हो सकती है।
सच तो यह है कि यह गरीब के बच्चे है। जिनकी मजबूरी है सरकारी स्कूल में जाना, और आप सरकारे ही तो बड़े और गहरे स्लोगन लिखवाती है। "" आओ..! स्कूल चले हम...?
अब आप ही बताइए माननीय मंत्री जी क्या यही है सरकारी पाठशाला, जहाँ देश का भविष्य पलता है।
सच में मौत की पाठशाला ने देश के लोगो के मन को झंझकोर के रख दिया है।
जर्जर स्कूल ही नही पूरा सरकारी सिस्टम भी जर्जर हो चुका है।
यह हादसा नही लापरवाह सिस्टम की देन है, जो हत्या से कम नही है।
सुनो सरकार अब तो बस एक ही है पुकार... ऐसी घटना, ' न भूतों न भविष्यति..!
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