सिखों के नवें गुरु, साहिब गुरु तेग बहादुर जिन्हें “हिंद दी चादर” की उपाधि से सम्मानित किया जाता है, उन्होंने धर्म, मानवता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए 24 नवंबर 1675 को दिल्ली में सर्वोच्च बलिदान दिया था। दीवान में इतिहास साँझा करते हुए उनके साथ शहीद हुए भाई मतीदास, भाई सती दास और भाई दयाला की अमर शहादत को भी बड़े भाव से याद किया गया। इन तीनों महान शहीदों ने कश्मीरी पंडितों सहित पूरे हिन्दू समाज की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर किए थे।कार्यक्रम के अंत में सिख समाज के अध्यक्ष प्रीतपाल सिंह ने संगत को संबोधित करते हुए कहा कि गुरु तेग बहादुर का जीवन देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा का अद्वितीय संदेश देता है। उन्होंने कहा, “गुरु महाराज ने हिंद की चादर बनकर न केवल सिक्खी, बल्कि पूरे देश की अस्मिता की रक्षा की। यह 350वां शहीदी पुरब हमें एकता, सेवा और धर्म-रक्षा की प्रेरणा देता है।
पूरे कार्यक्रम के दौरान श्रद्धालुओं का निरंतर उत्साह देखने को मिला। महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्ग सभी ने गुरु महाराज तथा शहीद सिक्खों को श्रद्धासुमन अर्पित किए। गुरुद्वारा परिसर और आस-पास के क्षेत्रों में पूरे दिन अनुशासन और भक्ति का वातावरण बना रहा।

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